जगदलपुर (डेस्क) – शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान एवं जनजातीय अध्ययनशाला द्वारा मंगलवार को ‘भूमकाल मूवमेंट : ऐन एपिटोम ऑफ ट्राइबल स्ट्रगल्स फॉर सर्वाइवल एंड आइडेंटिटी’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में कुलपति प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग के सह – प्राध्यापक डॉ. डीवी प्रसाद मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे.


इस अवसर पर डॉ. प्रसाद ने भूमकाल आंदोलन में आदिवासियों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देश की आजादी में योगदान देने वाले विभिन्न आंदोलनकारियों की जितनी प्रतिमाएं लगाते हैं और जितना उन्हें याद करते हैं उतना महान आदिवासी आंदोलनकारियों का स्मरण नहीं करते हैं. इन आंदोलनकारियों ने अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए भी कार्य किया पर उन्हें हम भूल जाते हैं. इन्हीं वीरों को याद करने के लिए सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर हर वर्ष 15 नवम्बर को जनजाति दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है. डॉ प्रसाद ने कहा कि भूमकाल आंदोलन को भारत के सारे आंदोलन की प्रेरणा माना जाता है. इसके साथ ही सारे आंदोलन सक्रिय हुए थे. डॉ. प्रसाद ने बताया कि भूमकाल आंदोलन अपनी सभ्यता व संस्कृति को संरक्षित करने पर विशेष जोर दिया था. जनजाति आंदोलन सभी जगह हुए है किंतु जो बस्तर में हुआ है वह अलग है. बस्तर की अनेक जनजातियों ने एक साथ मिलकर अंग्रेजों का विरोध किया था. भूमकाल आंदोलन में गुण्डाधूर ने ‘दारा मीरी’ को प्रतीक चिन्ह बनाया था जिसमें लाल मिर्च, धरती का दीपक, धनुष – बाण, भाला और आम की डालियाँ प्रमुख थी. जिसके द्वारा सूचनाएं लोगों तक पहुंचाई जाती थी. यह सभी आदिवासी संस्कृति की शक्ति प्रतीक होती हैं. आदिवासी जल, जमीन, जगंल को अपना मानते थे किंतु ब्रिटिश की वजह से आदिवासी मास्टर से सर्वेंट बन गए.

विवि के कुलपति श्री श्रीवास्तव ने कहा कि मानव विज्ञान व जनजातीय अध्ययनशाला विवि की सबसे पुराना ही नहीं सबसे महत्वपूर्ण विभाग है. अन्य स्टडीस की तरह कल्चर स्टडीस बहुत महत्वपूर्ण है. इस अध्ययन के सहारे हम पांच हजार साल पुरानी संस्कृति को जानते हुए उसे संयोजित करने का महती कार्य करते हैं.

इससे पहले कार्यक्रम संयोजक व विभागाध्यक्ष प्रो. स्वपन कुमार कोले ने स्वागत उद्बोधन में आदिवासी क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों से सभी को अवगत कराया. कार्यक्रम में समन्वयक डॉ. सुकृता तिर्की, अतिथि व्याख्याता डॉ. शारदा देवांगन सहित अन्य उपस्थित रहे.

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