जगदलपुर (डेस्क) – बस्तर अंचल की जीवनरेखा मानी जाने वाली इंद्रावती नदी में हाल ही में जलधारा की वापसी को लेकर राज्य के जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप द्वारा दिया गए बयान पर इंद्रावती नदी बचाओ संघर्ष समिति ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. मंत्री केदार कश्यप ने इसे सरकार की तत्परता और प्रतिबद्धता का परिणाम बताया था, लेकिन इंद्रावती नदी बचाओ संघर्ष समिति मीडिया प्रभारी लक्ष्मण बघेल ने इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए इसे जनसंघर्ष की जीत बताया है.

संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी लक्ष्मण बघेल द्वारा जारी एक प्रेस नोट में स्पष्ट किया गया है कि इंद्रावती नदी का प्रवाह किसी सरकारी योजना या पहल से नहीं, बल्कि किसानों और ग्रामीणों द्वारा स्वयं किए गए श्रमसाध्य प्रयासों से बहाल हुआ है. लक्ष्मण बघेल ने बताया कि जोरानाला संगम क्षेत्र में वर्षों से गाद, सिल्ट, बोल्डर और रेती जमा हो जाने से नदी पूरी तरह अवरुद्ध हो गई थी, जिससे क्षेत्र में भयावह पेयजल संकट उत्पन्न हो गया था. सरकारी तंत्र की उदासीनता के बीच संघर्ष समिति के नेतृत्व में ग्रामीणों ने खुद मोर्चा संभाला. 8 पिकअप गाड़ियों की मदद से नदी की सफाई की गई, जिससे करीब 8 इंच जलधारा बहाल हुई और धीरे – धीरे नदी में प्रवाह लौट आया. यह कार्यवाही समिति ने पूरी तरह अपने संसाधनों से की. जब संकट अपने चरम पर था, उस समय भी प्रशासन निष्क्रिय रहा. “सुशासन तिहार” के दौरान जब सैकड़ों गांवों से जलसंकट से संबंधित आवेदन सौंपे गए, तभी प्रशासन सक्रिय हुआ और कुछ तात्कालिक कार्यवाहियों को अपनी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत कर दिया गया. लक्ष्मण बघेल ने सरकार के इस रुख पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह आंदोलन सत्ता से नहीं, व्यवस्था से जवाबदारी मांगने का प्रयास था. इंद्रावती में बहता जल किसी मंत्री के दावे का प्रमाण नहीं, बल्कि किसानों की मेहनत की जीत है. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने जनसंघर्ष को नजरअंदाज कर इसे अपने खाते में दर्ज करने की कोशिश की. संघर्ष समिति ने प्रशासन से इंद्रावती बेसिन विकास प्राधिकरण को पुनः सक्रिय करने, नदी की सतत सफाई एवं संरक्षण के लिए दीर्घकालिक कार्ययोजना बनाने, और भविष्य में ऐसे संकट से बचाव हेतु स्थायी समाधान की मांग की है. साथ ही यह चेतावनी भी दी है कि यदि सरकार ने केवल प्रचार तक सीमित रहकर समस्याओं की अनदेखी की, तो प्रत्येक वर्ष आंदोलन अपरिहार्य होगा. बस्तर की जनता अब केवल घोषणाओं से नहीं, पारदर्शी और ठोस कार्यों से न्याय चाहती है. समय की मांग है कि सरकार प्रचार की राजनीति से ऊपर उठकर किसानों के प्रयासों को मान्यता दें और इंद्रावती नदी के दीर्घकालिक संरक्षण की ठोस पहल करें. वर्षों से उपेक्षित पड़ी इंद्रावती नदी के संरक्षण और किसानों के अधिकारों की मांग को लेकर निकाली गई “इंद्रावती बचाओ – किसान अधिकार पदयात्रा” ने शासन और प्रशासन को हरकत में ला दिया है. चित्रकोट से कलेक्टर कार्यालय तक किसानों ने पैदल मार्च कर सोई हुई व्यवस्था को जगाने का कार्य किया. इस पदयात्रा में सैकड़ों किसानों ने भाग लिया और नदी प्रवाह बहाल करने, जल संकट समाधान और इंद्रावती बेसिन विकास प्राधिकरण को पुनः सक्रिय करने की मांग उठाई. संघर्ष समिति ने इस यात्रा को किसानों की जीत की यात्रा बताया है, जिसने जनआंदोलन की ताकत को फिर एक बार साबित किया. जिला प्रशासन भी अब स्थिति की गंभीरता को समझते हुए सक्रिय नजर आ रहा है.

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