सुकमा (डेस्क) – जिले के सुदूर और नक्सल प्रभावित गांव गोलाकोंडा, जहां कभी बंदूक की गूंज, खौफ और अलगाव की सिसकियाँ सुनाई देती थीं, आज विकास की ओर एक ठोस कदम बढ़ा चुका है. गांव में जिओ मोबाइल टावर की स्थापना हो गई है. एक ऐसा सपना जो ग्रामीणों के लिए वर्षों से सिर्फ एक कल्पना था.
यह कार्य जिला कलेक्टर देवेश कुमार ध्रुव और पुलिस अधीक्षक किरण चव्हाण की दूरदृष्टि और सतत प्रयासों से संभव हो पाया है. जिन गांवों में सुरक्षाबल जाने से कतराते थे, वहां अब मोबाइल नेटवर्क की छाया में बच्चों की ऑनलाइन कक्षाएं चलने की उम्मीदें जाग चुकी हैं.
बदलाव की बुनियाद बनी तकनीक
गोलाकोंडा जैसे गांवों की सबसे बड़ी तकलीफ बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं था. बीमारी होने पर इलाज दूर, पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं, सरकारी योजनाओं की जानकारी तक पहुंच नहीं पाती थी. लेकिन अब जब जिओ का टावर खड़ा हुआ है, तो मोबाइल नेटवर्क के जरिए यह गांव देश – दुनिया से जुड़ गया है.
अब बच्चे ‘ऑनलाइन क्लास’ में जुड़ सकेंगे, युवाओं को डिजिटल रोजगार के अवसर मिलेंगे, किसान बाजार से भाव जान सकेंगे और महिलाएं अपने स्वास्थ्य व सुरक्षा से जुड़ी सेवाओं से जुड़ पाएंगी.
संघर्ष की पृष्ठभूमि में उम्मीद की किरण
यह बदलाव आसान नहीं था. नक्सली प्रभाव वाले क्षेत्र में मोबाइल टावर की स्थापना करना प्रशासन के लिए एक जोखिमभरा कदम था. लेकिन सशस्त्र बलों की सतर्क निगरानी और प्रशासन की रणनीति के चलते यह काम न केवल पूरा हुआ, बल्कि ग्रामीणों में विश्वास भी पैदा हुआ कि सरकार उनके साथ है, उनका भविष्य बेहतर हो सकता है.
कलेक्टर ध्रुव का कहना है, “हमारा उद्देश्य है कि हर अंतिम गांव तक विकास पहुंचे. गोलाकोंडा इसका प्रमाण है कि इच्छाशक्ति हो तो सबसे कठिन क्षेत्र भी बदलाव का गवाह बन सकता है.”
पुलिस अधीक्षक किरण चव्हाण ने कहा, “सुरक्षा के साथ – साथ विकास का मॉडल ही माओवाद को जड़ से खत्म कर सकता है. मोबाइल टावर का खड़ा होना इसी दिशा में एक मजबूत कदम है.”
गोलकोंडा बोले – ये है जिंदगी की नई शुरुआत
ग्रामीणों ने इसे “नई जिंदगी की शुरुआत” बताया है. अब उन्हें जंगल के बाहर की दुनिया जानने, सीखने और अपने बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने का साधन मिल गया है.
जहां कभी दीवारों पर लाल रंग से लिखे नारे दिखते थे, अब वहां मोबाइल सिग्नल की बूँदें उम्मीद की बरसात बन रही हैं. यह सिर्फ एक टावर नहीं, एक प्रतीक है उस बदलाव का जो बताता है कि अंधेरे से उजाले की राह कठिन जरूर होती है, लेकिन नामुमकिन नहीं. गोलाकोंडा अब सिर्फ एक गांव नहीं रहा, यह अब एक उदाहरण बन गया है नए भारत के उभरते भरोसे का प्रतीक है.