सुनील कश्यप, जगदलपुर। बस्तर में इन दिनों जुआरियों के हौसले बुलंद हैं। जुआरियों द्वारा लगातार साप्ताहिक मुर्गा बाजारों व बस्तर की संस्कृति के नाम पर आयोजित होने वाले मेला की आड़ में जुआनुमा ख़ुड़खुड़ी का खेल खिलाते नज़र आ रहे है। जिसमें छोटे बच्चों से लेकर बस्तर के ग्रामीण रुपए पैसों का दांव लगाते दिख रहे हैं।
बस्तर संभाग एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। और बस्तर को आज भी पिछड़ा माना जाता है। क्योंकि बस्तर के अधिकांश लोग अशिक्षित हैं। इसके बावजूद भी बस्तर अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही आदिवासी कल्चर, लोक कला, साहित्य और लोक नृत्य के लिए पूरे देश विदेश में विख्यात है, आदिवासी क्षेत्रों के संस्कृतियों में बस्तर की संस्कृति एक अलग ही पहचान रखती है। लेकिन इन दिनों बस्तर में सक्रिय जुआरियों की चारो तरफ हो रही चर्चा ने बस्तर का माहौल बिगाड़ रखा है। मेला व मुर्गा बाजारों की आड़ में हो रहे इस ख़ुड़खुड़ी खेल में बस्तर के ग्रामीणों का भविष्य ख़तरे में नजर आ रहा है। क्योंकि जुआरी दिनदहाड़े जुआ का खेल खिलाते नज़र आ रहे हैं।
इधर लगातार बस्तर पुलिस सट्टा-पट्टी के जुआरियों पर कार्यवाही करते आ रही है और कई सफलता भी हासिल करते हुए आरोपियों को जेल भी भेजा है। साथ ही बीते दिनों कोडेनार थाना के एरंडवाल में भी चल रहे खेल की सूचना मिलने पर कोडेनार पुलिस ने जुआरियों पर कार्यवाही किया था। बस्तर जिले के कोडेनार थाना क्षेत्र व दरभा थाना क्षेत्र में साप्ताहिक मुर्गा बाजार और मेले की आड़ में ख़ुड़खुड़ी का खेल चल रहा है। लिहाजा अब बस्तर विकास की ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर एक कदम और आगे बढ़ रही है। सूत्रों से यह भी खबर निकल कर सामने आ रही है कि आज भी इन क्षेत्रों में मुर्गा बाजार व मेला का आयोजन किया गया है।