सुकमा (नवीन कश्यप) – एक समय था जब सुकमा की धरती पर हर कदम अनिश्चितता से भरा होता था. पगडंडियों पर चलने से पहले सोच लेना पड़ता था कि लौट पाएंगे या नहीं. घाटी और जंगलों के बीच बसे गांवों में विकास का सपना देखना गुनाह समझा जाता था. ऐसे ही हालातों के बीच बीते 25 वर्षों से वीरान पड़ा था पूवर्ती गांव का साप्ताहिक बाजार. वो पूवर्ती, जो कभी व्यापार का केंद्र था, और बाद में नक्सली कहर का प्रतीक बना.

लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. पूवर्ती में 25 साल बाद जब पहली बार साप्ताहिक बाजार सजा, तो यह सिर्फ एक बाजार नहीं था, यह उम्मीदों की वापसी थी. भय और सन्नाटे की जगह बच्चों की खिलखिलाहट ने ली, दुकानों के तंबुओं में जीवन की रौनक लौट आई.

नक्सली हिंसा की पृष्ठभूमि में उम्मीद की एक तस्वीर

सुकमा जिले ने बीते दो दशकों में नक्सल हिंसा की अनगिनत भयावह कहानियां देखी हैं. आईईडी विस्फोटों में बिखरे शरीर, जवानों की शहादतें, स्कूलों को बारूद से उड़ाए जाने की खबरें, और ग्रामीणों के जीवन में स्थायी डर. जगरगुंडा, किस्टाराम, गोलापल्ली जैसे दर्जनों गांवों में लोगों ने एक पीढ़ी तक केवल बंदूकें और खून देखा.

इन्हीं कहानियों के बीच पूवर्ती का नाम भी हमेशा चर्चाओं में रहा. यह वही गांव है, जो देश के सबसे खतरनाक नक्सली कमांडर माड़वी हिडमा का पैतृक गांव माना जाता है. एक समय था जब इस गांव में कदम रखना तो दूर, उसका नाम लेना भी खतरे से खाली नहीं था. सलवा जुडूम की शुरुआत (2005) और उसके बाद नक्सलियों की प्रतिहिंसक कार्रवाई में यह गांव पूरी तरह वीरान हो गया था.

2024 में बदली कहानी, जब गांव में आया सुरक्षा कैम्प

वर्ष 2024 में जब सुरक्षा बलों ने पूवर्ती में कैंप स्थापित किया, तो यह केवल सैन्य उपस्थिति नहीं थी, यह जीवन की वापसी थी. कैंप के बाद गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने का काम शुरू हुआ. गुरुकुल स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र, पीडीएस भवन जैसे आधारभूत ढांचे खड़े हुए. लोग फिर से खेती करने लगे, बच्चे पढ़ने लगे, और महिलाएं आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने लगीं.

साप्ताहिक बाजार : बदलाव का सबसे जीवंत प्रतीक

जब बाजार दोबारा खुला, तो केवल पूवर्ती नहीं, बल्कि उसके आसपास के दर्जनों गांवों के लोगों ने राहत की सांस ली. अब उन्हें रोजमर्रा की चीजों के लिए जंगल पार नहीं करना पड़ता. बारिश में जान जोखिम में डालकर सफर करने की मजबूरी खत्म हो गई है. अब गांव में ही सब्ज़ी, कपड़े, बीज, दवाइयां और जरूरी सामान उपलब्ध हैं. बाजार में बच्चों की शरारतें, बुजुर्गों की सुकून भरी नजरें, और महिलाओं की आत्मविश्वास से भरी बातें साफ इशारा कर रही हैं, पूवर्ती लौट आया है.

लोकतंत्र में भागीदारी, नक्सलवाद को नकराने की घोषणा

वर्ष 2025 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पहली बार पूवर्ती के ग्रामीणों ने मतदान किया. यह सिर्फ एक मतपत्र पर मुहर नहीं थी, यह नक्सली विचारधारा को नकारने की सार्वजनिक घोषणा थी. लोकतंत्र के इस नए सूरज ने यह साबित कर दिया कि अब बंदूक नहीं, बैलेट की ताकत में विश्वास है.

अब पुर्वती डरता नही, वह सपना देखता है

आज पूवर्ती केवल माड़वी हिडमा का गांव नहीं, बल्कि एक प्रतीक बन गया है. उस बदलाव का जो हिंसा से शांति की ओर, अंधेरे से उजाले की ओर, और डर से विकास की ओर ले जाता है. सुकमा की घाटी में यह परिवर्तन केवल एक गांव का नहीं, बल्कि पूरे बस्तर के भविष्य की नींव है.

जहां कभी बारूद की गंध से हवा भर जाती थी, वहां अब बाजार की हलचल, लोकतंत्र की बहार और विकास की महक है. यही है सच्चा परिवर्तन, यही है नई सुबह.

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